JAG UTHI NARI SHAKTI
जाग उठी नारी शक्ति‘नारी’ और ‘शक्ति’ शब्दों को एक-दूसरे का पर्याय कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि यह नारी की ही शक्ति है कि वह अपने जैसे नर-नारियों को जन्म देती है। जब नारी के साथ ‘शक्ति’ शब्द जुड़ जाता है तो वह दुर्गा का साक्षात् अवतार ही बन जाती है और उसमें घर, समाज व दुनिया में व्याप्त बुराइयों के विरुद्ध लड़ने की एक अदम्य शक्ति उत्पन्न हो जाती है।कहते हैं, अत्याचार की अति एक क्रांति को, एक नव-परिवर्तन को जन्म देती है।
प्रस्तुत पुस्तक की प्रत्येक अनुभूत कहानी में किरण बेदी ऐसी क्रांति, ऐसे नव-परिवर्तन को प्रत्यक्ष घटते हुए पाती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में सामाजिक व आर्थिक बुराइयों की अंदरूनी सच्चाई के साथ-साथ समाज की घरेलू समस्याओं, महिलाओं से जुड़े मामलों, पुलिस प्रताड़ना, नशा, कैशोर्य समस्याओं और अपराध आदि का विश्लेषण है। ये कहानियाँ समाज में व्याप्त उन असामाजिक लोगों को भी सावधान करती हैं, जो नारी शोषण करते और उसे प्रश्रय देते हैं। आज आधी आबादी की आवाज का दम नहीं घोंटा जा सकता। आज हर नारी शांति की ‘किरण’ है, जो बुराइयों के अँधेरे को अपनी अदम्य नारीत्व शक्ति से दूर करने के लिए कटिबद्ध है।नारी का सम्मान पुनर्स्थापित करने का एक विनम्र प्रयास है यह क्रांतिकारी पुस्तक।
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हिम्मत है - किरण बेदी
जीवनी/आत्मकथा
भव्य और आलीशान राष्ट्रपति भवन को जाने वाली सड़क राजपथ अपने पूरे वैभव में जगमगा रही थी। ऐसा हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर होता ही है। वर्ष 1975 की 26 जनवरी को भी ऐसा ही हुआ। अगर कुछ भिन्न था तो यह कि मार्च पास्ट में पहली बार दिल्ली पुलिस के पुरस्कृत दस्ते का नेतृत्व एक महिला अधिकारी कर रही थी। उसी महिला का कार्य निष्पादन इतना अधिक प्रभावशाली रहा कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने सहायकों को इशारे से उस महिला अफसर की पहचान करवाई और अगली ही सुबह उसे नाश्ते के लिए आमंत्रित किया। वह अधिकारी और कोई नहीं किरण बेदी ही थीं। किरण की पहली नियुक्त उस समय चाणक्यपुरी, नई दिल्ली में सब-डिवीजनल अधिकारी के रूप में हुई थी।
दरअसल किरण को बिल्कुल आखिरी समय पता चला कि उन्हें परेड का नेतृत्व नहीं करना है। वह दिल्ली पुलिस के तत्कालीन महानिरीक्षक पी.आर. राजगोपाल से मिलने के लिए तत्काल पहुंची और उसने प्रश्न किया, ‘‘सर, मुझे बताया गया है कि परेड़ का नेतृत्व मैं नहीं कर रही हूँ ?’’
‘‘देखों किरण, पंद्रह किलोमीटर तक मार्च करना है, और तुम्हें इतना लम्बा रास्ता भारी तलवार थामकर करना होगा। कर पाओगी ?’’
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આવો આપણે સભ્યતા કેળવીએ : કિરણ બેદી પવન ચૌધરી
'Broom and Groom' નો ગુજરાતી અનુવાદ
આવો આપણે સભ્યતા કેળવીએ એ ફક્ત પુસ્તક નથી. વ્યક્તિત્વ વિકસાવવાનું અભિયાન છે. આ પુસ્તક કોર્પોરેટ ક્ષેત્રના કર્મચારીઓને ગળાકાપ સ્પર્ધામાંથી અલગ તારવવામાં અને નેતૃત્વ ખિલવવામાં મદદ કરશે, બાળકોને સામાજિક આદાન-પ્રદાનમાં સર્વશ્રેષ્ઠ બનાવશે. વિદ્યાર્થીઓને મુલાકાતોમાં વિશષ્ટતા પ્રદાન કરશે અને દુનિયાના અન્ય દેશોની હરોળમાં ઊભા રેહવા ભારતને સહાય કરશે.
સમાજ સભ્ય, સુસંસ્કૃત અને ભદ્ર વ્યવહાર પ્રત્યે સભાન બને તેવી ઈચ્છા બંને લેખક ધરાવે છે. બંને લેખકનું સ્વપ્ન છે કે આ પુસ્તક એક અભિયાન બની જાય અને સત્તાધારીઓ અને જનતા પરસ્પર હળીમળીને સ્થિતિ અને સંજોગોને બદલી નાખે, જેમાં અત્યારે આપણે રહીએ છીએ.
કિરણ બેદી અને પવન ચૌધરી તો આ દિશામાં અગ્રેસર થઇ ગયા છે અને હવે તમારી રાહ જોવાય છે.....
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